मन की धृष्टता (कविताएँ)

वो मामूली बाते है जो अधिकांश भारतियों को पता होती है :



चुनाव आते ही प्रचार,प्रसार,सजावट...पर करोडो का खर्चा हो जाना ,

एवं आगामी पांच साल तक उसकी सफाई तक नहीं हो पाना |



चुनाव आते ही कीमतों का कम होना यूँ

जैसे किसी मंत्री ने जादू किया हो “गीली गीली छु“ |



अबकी बार भ्रष्ट नेता कुछ और नए पैंतरे ले कर आएंगे

इस बार चुनाव से कुछ पहले सेपेक्ट्रम आदि घोटाले के “ दोषी पकडे जायेंगे ” |



जन विचार होगा “कदाचित अबकी ये सुधर गये”

भ्रष्ट विचार होगा “बचे कार्य पूर्ण करने के पट खुल गए” |



अब आप को एक अंदर की बात बताता हूँ

इस धारा के वर्तमान को भूतकाल से सिखलाता हूँ ||



हे दशरथ ! नए वचनों के जाल में ,दोबारा न आना

मनुपुत्रो औषधि की खुशी में दर्द ,भूल न जाना |





हे युधिष्टिर इस द्वित में , जो पुनः जाओगे तुम

“दोषी पकड़े गए “के भ्रम में पुनः आओगे तुम |



नाम के काराग्रह में जा , रस रंग आदि वो पायेगा

एवं विधाता भी तेरी मूर्खता पर खिन्न-खिन्न हो जायेगा |



ये न सोचे जन की अबकी , जनमत में जाते नहीं

चीरहरण उसका भी होता, जिसने स्वयं दावं खेला नहीं |



देश हो रहा है नग्न और तू मौन है

क्या तू भी ध्रितराष्ट्र की तरह नेत्रविहीन है |



तुझे श्रवण में आती है केवल शकुन की ही वाणी

वर्तमान में संचार नाम से पुनः जन्मा है वो प्राणी |



उस शकुन के कार्य की इस काल में ”काम” सी गति हो गई

भस्म तो हुआ नहीं परन्तु व्याप्त सब जगह हो गई |



अब तो न्याय करो इस धरा पर ओ! पृथ्वीराज

उपेक्षा करो क्षमा की यही है समय की पुकार



नहीं किया जो तुमने तो पुनः गजनी आयेगा

तुम्हारी इस नपुंसकता में देश भी बिक जायेगा |



तुम तो सुख से जी लिए देश से आंखे मुंद कर

सो गए अंत में काला कफ़न ओड़ कर |



कदाचित पल भी गए, तेरे पूत तेरी सम्पदाओ से

क्या उत्तर देगा तू अपने पूर्वजो के अश्रुओ के |



काल्की की कर प्रतीक्षा तू बच नहीं पायेगा

कर से कार्य कर काल्कि स्वयं तेरा मार्ग सशक्त बनाएगा |



अबकी बार भ्रष्ट नेता कुछ और नए पैंतरे ले कर आएंगे

इस बार चुनाव से कुछ पहले सेपेक्ट्रम आदि घोटाले के “ दोषी पकडे जायेंगे ” ....



®© अर्जुन शर्मा
विक्रम संवत २०६७ फाल्गुन कृष्ण ७
रात्रि ११:०६




 १. देखते तो नहीं थे मेरा पृष्ठ  लोग पहले भी,
पर दो घड़ी के लिए आ जाते थे

कभी किसी चित्र पर टिप्पणी तो कभी ,
किसी टिप्पणी पर व्यंग कर जाते थे

पर आज जब मैंने व्यर्थ लिखना बंद किया ,
चुटकुले और व्यंग पर समय देना कम किया

कम किया मैंने  व्यर्थ ही रंग  देखना ,
प्रारंभ किया दो घड़ी के लिए भारत का अन्वेषण

तब इस न्यायालयिक भीड़  में तथ्यों के साथ ,
जानकारी देने की कोशिश  करता हूँ

मैं दो घड़ी का मतवाला देशमत में आकार ,
विचार करने का सहास कर बैठा

भारत के बारे में केवल रुदन करने के अपितु ,
दो घड़ी कुछ करने की धृष्टता कर बैठा

कदाचित इसी कारण  हम कुख्यात हो गए ,
और लोग हमारे पृष्ठ पर नहीं आने को बाध्य हो गए

आ जाया  करो दो घड़ी का समय निकाल कर ,
पुन: चले जाना एक दृष्टिपात  कर

उस  दो घड़ी की आग में मन को ताप  लो ,
घर से बाहर निकलो और देश की भांप लो

मित्रता के प्रयोजन से आपको आना ही होगा,
एवं देश की कारण सबको दो घड़ी का मतवाला होना  ही होगा

®© अर्जुन शर्मा
विक्रम संवत २०६७ माघ कृष्ण २ के दूसरे पहर में रचा गया |








पूर्णताः स्वदेशी :)
जय भारत ...जय भारत स्वाभिमान
जय श्री कृष्णा ™