रविवार, 10 जुलाई 2011

मंदिर का धन जनता का है , तो काला धन किसका ?

लो कर लो बात

कालाधन और भ्रष्टाचार रामदेव जी एवं अन्ना हजारे जी २जी , ३ जी  ... ओसमा जी इन सब सर्वप्रचलित बातो के बीच अचानक से आ जाते  है “ श्री पदमनाभ मंदिर “ मंदिर के गुप्त तलघर में बने कमरों से कई सहस्त्र करोड़ो का कोष मिलता है जो की मेरे मतानुसार मंदिर में आये दान एवं वहाँ की प्रजा के कोष का संग्रह है , राज परिवार ने जिसने कई दशको पहले स्वयं को श्री पद्मनाभ भगवान का दास घोषित कर दिया था एवं अपनी भी सभी संपत्ति कदाचित वहीँ रखवा  थी जिसका कारण मुग़ल एवं अंग्रेज आतताइयों से उसे कोष की सुरक्षा से बढ़ कर एक कारण भगवान के प्रति समर्पण लगता है ऐसा इस लिए क्यूंकि राजा की मृत्यु के बाद उसके वंशजो (संभव है नहीं भी ) ने मात्र एक बार वित्तीय संकट से घिरने पर   १९०८ में कोष को खोलने का प्रयास किया था , इतने बड़े कोष का अगर वे चाहते तो स्वतंत्रता( राजशक्ति के स्थानांतरण ) के बाद  गुप्त रूप से उपभोग कर सकते थे |

अब मिडिया कह रहा है की ये संपत्ति देश की  “ जनता ” के कितने काम आ सकती है , दुर्भाग्य ये है की देश की जनता की में नेता भी आते है
“धन ही धन को आकर्षित करता है ” अब कई सदियों पुराने कोष का वर्तमान मूल्यांकन करना मुझे तर्क संगत नहीं लगता मेरे मत से उस खजाने को सांकेतिक रूप से देश के कोष में रखवा कर इस बहुमूल्य संग्रह को पर्यटकों के लिए सार्वजानिक कर देना चाहिए जिससे देश के भविष्य जान सके क्यूँ  भारत को “सोने की चिड़िया “कहा जाता था एवं विदेशी पर्यटकों से पूंजी भी मिलेगी |
अब लोग कह रहे है इस पूंजी से सरकार की कई योजनाएं कई वर्षों तक चल सकती है सरकार ने पहले भी प्रजा के खजाने का बहुत गलत उपयोग किया है
१ . जम्मू-कश्मीर के खजाने में से श्रीनगर जाते जाते  कई चीज़े लुप्त कर दी गई |
२ .हैदराबाद १९६७ में सरकार ने खजाना २४० करोड़ में ले लिया जो की वास्तविकता में कई हज़ार का था | उदहारण : कोष का एक हीरा “ जैकब ” ४०० करोड़ का था (स्रोत : भास्कर)
 
३ . राजस्थान में भी पानी के टाँको (टंकी ) में से कई करोड़ मूल्य का सोना कई ट्रकों द्वारा दिल्ली ले जाने की बात प्रचलित है ये इंदिरा जी के साशन काल में आपातकाल के समय हुआ था |

सरकार प्राप्त कोष  को लेकर पारदर्शिता नहीं रखती एवं मूल्य भी कम बताती है , क्या पूरा कोष राज कोष में जाता है ये भी संदेहास्पद है क्यूंकि राबर्ट वाड्रा  एवं सोनिया जी की बहन की  पुरातन सामान के विक्रय की दुकाने है
:) |
जनता के हित में जो लोग इस कोष को व्यय करने के पक्ष में है वो कालाधन लाने में और बढ़-चढ़   कर सहयोग दे वो काला धन तो इन सब खजानों से बहुत अधिक है उसका उपयोग जनता के लिए हो इस धरोहर को संभाल कर रखना अच्छा होगा |
ये क्या बात हुई की मंदिर से निकला धन तो जनता का है जनता में बाट दो (बाटने के लिए सरकार हमारी सहायता करेगी “सहायता” ???) और ये जो काला धन है वो किसका है ?