शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

"हिवरे बाजार में स्वराज" खुद देखे और सभी को दिखाएँ

मित्रों , लक्ष्य हीन प्रयास आपको कहीं नहीं ले जाता |
ये उन सभी लोगो के लिए उत्तर है जो अभी तक स्वदेशी की ताकत को नहीं समझ पाए है जो अभी तक हमारा असली लक्ष्य नहीं जान पाए है ,वे ये देखे और जाने की हम भारत के  कुछ  गांवों  की वास्तविकता को सभी जगह लाने के लिए प्रयास रत है | क्या आप अपने  गाँव का विकास नहीं देखना चाहते ?
भाग १ .





भग २.






भाग ३ .





फिल्म : हिवरे बाजार में स्वराज
अवधि : 23 मिनट
सहयोग राशि : 20 रुपए (डाक से मंगाने के लिए 50 रुपए पैकिंग व डाकखर्च अलग)
सीडी/डीवीडी मंगवाने के लिए संपर्क करें- 09968450971
 

गांव देखो! स्वराज देखो! हिवरे बाजार देखो 

फिल्में सपनों की दुनिया में ले जाती हैं, हर उम्र और वर्ग के लोग फिल्में देख-देखकर सपनों में जीते रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश आदि कई राज्यों के गांवों में आजकल एक ऐसी फिल्म लोकप्रिय हो रही है जो वर्षों पुराने एक सपने को सच करने के लिए प्रेरित कर रही है, यह सपना है स्वराज का सपना। देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का सपना, जहां आम आदमी व्यवस्था का मालिक सिर्फ लोकतंत्र की परिभाषा में ही नहीं बल्कि हकीकत में भी हो।

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बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

गंगा बहती हो क्यूं ?

परिवर्तन प्रकृति का नियम है , इस को ढाल बना कर कुछ भी कर लेने की हमे आदत सी हो गई है |
पहले  से अब हालत बदल गए है मनुष्य ने कई सालो से बुरी खबरो : ये हुआ ,ये  धमाका आदि सुन पढ़
इनके खिलाफ भी प्रतिरोधक क्षमता  (एंटी बाडीज) विकसित कर ली है अब उस पर इनका कोई असर नहीं पड़ता जब तक उसका कोई अपना अहित ना हुआ हो उसे ना दर्द है ना ही परवाह परन्तु वह बेचारे लोग जो अभी तक इनके विरुद्ध प्रतिरोध विकसित नहीं कर पाए आज भी इन्हें पढ़ सिहर जाते है किन्तु वे दो घड़ी के लिए सोचने के आलावा कुछ नहीं कर पाते |सब अपनी जगह संतुष्ट नहीं भी है तो क्या करे कई सौ साल की गुलामी और विरासत में मिली आज़ादी जिसके लिए हमने कोई संघर्ष नहीं किया हमे ऐसे मिल गई जैसे "अंधे के हाथ बटेर " अंग्रेज जाते जाते हमारी आंखे फोड़ गए १९४७ का ग़दर उसका ही रक्त प्रवाह था |
हम कहने को संपन्न तो हो गये वो भी केवल कुछ ही जगह परन्तु उसकी कीमत हमे अपनी रीढ़ की हड्डी गिरवी रख चुकानी पड़ी |
मर्म समझने के बाद आप जान ले की आमनुष्यों की ये व्यवस्था बहुत अद्भूत है |
हाँ परन्तु उनकी इस व्यवस्था में आज भी कुछ माँ भारती के सच्चे सपूत पैदा हो जाते है , जो विश्व में शांति एवं एकता के लिए भारत के नेतृत्व की आवश्यकता को पहचानते है एवं  भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने के लिए कोल्हू के बैल की तरह लगे रहते है , पुण्यभूमि भारत की यह दुर्दशा देख वे कहने के आलावा करने को प्राथमिकता देते है एवं जीवन परियन्त वो ही कार्य करते है जिसके लिए उनका जन्म हुआ था माँ भारती की सेवा |